शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

चन्द्रशेखर आजाद

पण्डित चन्द्रशेखर 'आजाद'का जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बदरका गाँव में २३ जुलाई सन् १९०६ को हुआ था। आजाद के पिता पण्डित सीताराम तिवारी संवत् १९५६ में अकाल के समय अपने पैतृक निवास उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के बदरका गाँव को छोडकर पहले कुछ दिनों मध्य प्रदेश अलीराजपुर रियासत में नौकरी करते रहे फिर जाकर भावरा गाँव में बस गये। यहीं बालक चन्द्रशेखर का बचपन बीता। उनकी माँ का नाम जगरानी देवी था। आजाद का प्रारम्भिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित भावरा गाँव में बीता अतएव बचपन में आजाद ने भील बालकों के साथ खूब धनुष बाण चलाये। इस प्रकार उन्होंने निशानेबाजी बचपन में ही सीख ली थी ।१९१९ में हुए अमृतसर के जलियांवाला बाग नरसंहार ने चन्द्रशेखर को उद्वेलित कर दिया। तभी से उनके मन में एक आग धधक रही थी। जब गाँधी जी ने सन् १९२१ में असहयोग आन्दोलन फरमान जारी किया तो वह आग ज्वालामुखी बनकर फट पडी और तमाम अन्य छात्रों की भाँति चन्द्रशेखर भी सडकों पर उतर आये। अपने विद्यालय के छात्रों के जत्थे के साथ इस आन्दोलन में भाग लेने पर वे पहली बार गिरफ़्तार हुए और उन्हें १५ बेतों की सज़ा मिली।असहयोग आन्दोलन के दौरान जब फरवरी १९२२ में चौरी चौरा की घटना के पश्चात् बिना किसे से पूछे गाँधीजी ने आन्दोलन वापस ले लिया तो देश के तमाम नवयुवकों की तरह आज़ाद का भी कांग्रेस से मोह भंग हो गया और पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल,शचीन्द्रनाथ सान्याल योगेशचन्द्र चटर्जी ने १९२४ में उत्तर भारत के क्रान्तिकारियों को लेकर एक दल हिन्दुस्तानी प्रजातान्त्रिक संघ (एच० आर० ए०) का गठन किया । चन्द्रशेखर आज़ाद भी इस दल में शामिल हो गये।
आजाद प्रखर देशभक्त थे। काकोरी काण्ड में फरार होने के बाद से ही उन्होंने छिपने के लिए साधु का वेश बनाना बखूबी सीख लिया था और इसका उपयोग उन्होंने कई बार किया। एक बार वे दल के लिये धन जुटाने हेतु गाज़ीपुर के एक मरणासन्न साधु के पास चेला बनकर भी रहे ताकि उसके मरने के बाद मठ की सम्पत्ति उनके हाथ लग जाये। परन्तु वहाँ जाकर जब उन्हें पता चला कि साधु उनके पहुँचने के पश्चात् मरणासन्न नहीं रहा अपितु और अधिक हट्टा-कट्टा होने लगा तो वे वापस आ गये। प्राय: सभी क्रान्तिकारी उन दिनों रूस की क्रान्तिकारी कहानियों से अत्यधिक प्रभावित थे आजाद भी थे लेकिन वे खुद पढ़ने के बजाय दूसरों से सुनने में ज्यादा आनन्दित होते थे। एक बार दल के गठन के लिये बम्बई गये तो वहाँ उन्होंने कई फिल्में भी देखीं। उस समय मूक फिल्मों का ही प्रचलन था अत: वे फिल्मो के प्रति विशेष आकर्षित नहीं हुए। एक बा‍र आजाद कानपुर के मशहूर व्यवसायी सेठ प्यारेलाल के निवास पर एक समारोह में आये हुये थे । प्यारेलाल प्रखर देशभक्त थे और प्राय: क्रातिकारियों की आथि॑क मदद भी किया क‍रते थे। आजाद और सेठ जी बातें कर ही रहे थे तभी सूचना मिली कि पुलिस ने हवेली को घेर लिया है। प्यारेलाल घबरा गये फिर भी उन्होंने आजाद से कहा कि वे अपनी जान दे देंगे पर उनको कुछ नहीं होने देंगे। आजाद हँसते हुए बोले-"आप चिंन्ता न करें, मैं कानपुर के लोगों को मिठाई खिलाये बिना जाने वाला नहीं।" फिर वे सेठानी से बोले- "आओ भाभी जी! बाह‍र चलकर मिठाई बाँट आयें।" आजाद ने गमछा सिर पर बाँधा, मिठाई का टो़करा उठाया और सेठानी के साथ चल दिये। दोनों मिठाई बाँटते हुए हवेली से बाहर आ गये। बाहर खडी पुलिस को भी मिठाई खिलायी। पुलिस की आँखों के सामने से आजाद मिठाई-वाला बनकर निकल गये और पुलिस सोच भी नही पायी कि जिसे पकडने आयी थी वह परिन्दा तो कब का उड चुका है। ऐसे थे आजाद!
चन्द्रशेखर आज़ाद हमेशा सत्य बोलते थे। एक बार की घटना है आजाद पुलिस से छिपकर जंगल में साधु के भेष में रह रहे थे तभी वहाँ एक दिन पुलिस आ गयी। दैवयोग से पुलिस उन्हीं के पास पहुँच भी गयी। पुलिस ने साधु वेश धारी आजाद से पूछा-"बाबा!आपने आजाद को देखा है क्या?" साधु भेषधारी आजाद तपाक से बोले- "बच्चा आजाद को क्या देखना, हम तो हमेशा आजाद रहते‌ हें हम भी तो आजाद हैं।" पुलिस समझी बाबा सच बोल रहा है, वह शायद गलत जगह आ गयी है अत: हाथ जोडकर माफी माँगी और उलटे पैरों वापस लौट गयी।
चन्द्रशेखर आज़ाद ने वीरता की नई परिभाषा लिखी थी। उनके बलिदान के बाद उनके द्वारा प्रारम्भ किया गया आन्दोलन और तेज हो गया, उनसे प्रेरणा लेकर हजारों युवक स्‍वतन्त्रता आन्दोलन में कूद पड़े। आजाद की शहादत के सोलह वर्षों बाद १५ अगस्त सन् १९४७ को हिन्दुस्तान की आजादी का उनका सपना पूरा तो हुआ किन्तु वे उसे जीते जी देख न सके। आजाद अपने दल के सभी क्रान्तिकारियों में बडे आदर की दृष्टि से देखे जाते थे। सभी उन्हें पण्डितजी ही कहकर सम्बोधित किया करते थे। वे सच्चे अर्थों में पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल के वास्तविक उत्तराधिकारी जो थे।


गुरुवार, 15 सितंबर 2011

खुद का ख्याल

खुद की इज्जत को नजरअंदाज करना मानसिक रूप से खुद को कमज़ोर करना है। जिस भी काम में आपको मजा आता हो उसके लिए वक्त जरूर निकालें।खुद के बारे मैं अच्छा सोचे और दूसरों के बारें में बहुत अच्छा | जब भी निराशा और नकारात्मकता पैदा हो अपना ध्यान किसी सकारात्मक गतिविधि में लगाएं। सकारात्मक चिंतन करें। इससे ऐसा आत्मबल पैदा होता है जो सफलता की राह में आने वाली चट्टानों को उखाड़ फेंकता है।

करियर

सपना टूट गया... सब ख़त्म हो गया और भविष्य अंधकारमय हो गया... आजकल  जरा-सी असफलता मिलने पर लोगों के  मन में यही विचार आने लगते हैं और खासतौर पर अगर बात करियर की हो, तब मामला और भी गंभीर हो जाता है। स्वयं को किसी परीक्षा के लिए तैयार करना अपने आप में एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें मन मारने से लेकर मनोवैज्ञानिक तौर पर स्वयं को तैयार करने की बात आती है।  स्वयं के प्रति आशाओं और आकांक्षाओं का नया दौर आरंभ हो जाता है | पर सभी को सफलता नहीं मिलती और असफलता से सामना हो ही जाता है। यह असफलता कई को भीतर तक तोड़ देती है, अवसाद उन्हें घेर लेता है ।  दोस्तो, करियर की डगर में भेड़चाल चलना या दबाव में आकर ऐसे करियर के लिए प्रयास करते रहना, जिसमें आपका दिल न लगता हो, समय को व्यर्थ करना ही है। अपने आपसे लगातार प्रश्न करते रहें और जो स्वयं को अच्छा लगता है उसी करियर को अपनाएँ। दुनिया में डॉक्टर, इंजीनियर,MBA बनने के अलावा भी बेहतरीन विकल्प मौजूद हैं।पैसे को ही देखकर करियर सेलेक्ट ना करें।अगर आप भीतर के डर को निकाल फेंकें और स्वयं की गलतियों को स्वीकार कर नए बदलाव की ओर जाने के लिए अग्रसर हों तब सफलता निश्चित मिलती है और अगर आप इस डर को नहीं निकाल पाए और हरदम बदलाव का विरोध ही करते रहे तब आपको भी बदल दिया जाएगा। थोड़ा सोचें, समझें और फिर अपने करियर की ओर तेजी से कदम बढ़ाएँ और फिर सपने पूरे करें और इसका ध्यान रखें कि इन सपनों में केवल वे ही न हों, बल्कि उनके माता-पिता भी हों और तमाम वे रिश्तेदार और दोस्त हों जिन्होंने बिना किसी स्वार्थ के अपना माना हो।

AMITSHRI: Think Positive

AMITSHRI: Think Positive

सोमवार, 12 सितंबर 2011

Aaj Ki baat

   "आज" एक ऐसा लफ्ज़ जिसमे जीने के लिए हम अपना भूत और भविष्य दोनों भूल जाते है | हम ना बीते हुए कल से सीखते है और ना ही आने वाले कल के बारे मैं सोचते और इसी तरह हमारी ज़िन्दगी अपने अंतिम पर्व में पहुँच जाती है.| अंतिम समय में हम पछतावे के अलावा कुछ नहीं कर सकते .अगर आप अपने इच्छाओं और अकान्छाओं को अपने अनुसार पूरा करना चाहते है तो अपने अन्दर के डर को हटाना पड़ेगा |.जिसे भविष्य का भय नहीं रहता, वही वर्तमान का आनंद उठा सकता है| स्वामी विवेकानंद के अनुसार भय ही पतन और पाप का निश्चित कारण है |चाणक्य कहते है जैसे ही भय आपकी ओर बढ़े, उस पर आक्रमण करते हुए उसे नष्ट कर दो | जो चुनौतियों का सामना करने से डरता है, उसका असफल होना तय है|संकल्प और सकारात्मक आत्मअनुशासन से आप अपने डर को दूर कर सकते हैं |